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Gaurav Dwivedi

Romance

4.8  

Gaurav Dwivedi

Romance

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद-१

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद-१

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मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग

मैं एक मुसाफिर थका हुआ

तुम छाँव भरी शीतल सी डगर

मैं हरदम जो मंजिल ढूंढूं

तुम ही मेरी वो मंजिल हो

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग!!


मैं जिस उपवन का फूल बनूँ

तुम ही वो हर उपवन-उपवन

मैं जिस बसंत में हँसूँ-खिलूँ

तुम ही मेरा वो हर बसंत

मैं उपवन एक जवानी का

तुम ही उसका सारा यौवन

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग !!


मैं नीलगगन सा हूँ ग़र तो

तुम ही मेरा वो नील रंग

मैं एक पपीहा प्यासा सा

तुम ही तो हो स्वांति का जल

मैं हूँ बहते सागर की तरह

तुम ही हो उस सागर का जल

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग !!


मैं हूँ यदि आधा सा यौवन

तुम मेरी पूर्ण जवानी हो

मैं टूटन हूँ पुरवाई की

तुम उसकी इक अंगड़ाई हो

मैं प्यासा जिस जीवन रस का

तुम ही उस रस की गागर हो

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग !! 


मैं हूँ इक जलता सा जुगनू

तुम उसमें बसी दामिनी हो

मैं जिन रातों में अँधियारा

तुम ही उन रातों में पूनम

मैं उगता भोर अगर हूँ तो

तुम ही उसका अरुणिम सूरज

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग !! 


मैं हूँ यदि अटल हिमालय सा

तुम ही तो मेरा हो आधार

मैं सूर्य चमकता हूँ नभ पर

तुम उसकी सुर्ख गवाही हो

मैं हूँ यदि बारिश की बूँदें

तुम ही उसकी सावन ऋतु हो

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग !!


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