प्रेम है या है कोई उलझी पहेली?
प्रेम है या है कोई उलझी पहेली?
प्रेम है या है कोई उलझी पहेली
हल सरल इसका नहीं है आज कोई
प्रेम है या है कोई उलझी पहेली!
तन को पूजा मन को चाहा ना मगर
प्रेम का हर शब्द झूठा है इधर
सूरतों से ही यहाँ है प्यार होता
सीरतों का है यहाँ बस वध ही होता
प्रेम है या है कोई उलझी पहेली
हल सरल इसका नहीं है आज कोई!
प्रेम को ही प्रेम से सब डस रहे हैं
द्रौपदी का चीर पल-पल खींचते हैं
सीता को उसके ही घर से हर रहे हैं
राम बनकर राम को ही ठग रहे हैं
प्रेम है या है कोई उलझी पहेली
हल सरल इसका नहीं है आज कोई!
प्यार को कैसे कहें के प्यार होता
हर घड़ी बस प्यार का व्यापार होता
जिसके कंधे सर धरा था मान अपना
उसने बेबस जानकर आँचल था खींचा
प्रेम है या है कोई उलझी पहेली
हल सरल इसका नहीं है आज कोई!
झूठी कसमों झूठे वादों के सहारे
अपना तन-मन सब किया जिसके हवाले
आत्मा और मन की हत्या कर गया
दोष सारा मेरे सर ही मढ़ गया
प्रेम है या है कोई उलझी पहेली
हल सरल इसका नहीं है आज कोई!
प्रेम का कैसा अलग ये रूप आया
जिसका खुद प्रतिविम्ब शीशे में न आया
तन के सुख को भोगना बस इसको आया
नोंचना बस मन के भावों को है आया
प्रेम है या है कोई उलझी पहेली
हल सरल इसका नहीं है आज कोई
प्रेम है या है कोई उलझी पहेली!!
