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DHANSHRI KABRA

Inspirational

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DHANSHRI KABRA

Inspirational

उलझन

उलझन

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बहुत खामोश थी वो बचपन की हवाएं, 

बोहोत खामोशी थी नादानी के उन लम्हों में,

बिन शिकायत सुकून की मुस्कुराहट हुआ करती थी चेहरे पर,

बड़े क्या हुए सब कुछ बदल ही गया इस दुनिया में,


तूफानों की यह कश्ती उलझनों के भंवर को लाई साथ में,

जितना भी संभलने की कोशिश करें इस मुश्किलों भरी दौड़ में,

ये अनजान सी उलझन भी अजीब पहेली तोहफे की तौर मिली है विचारों में,

जिंदगी की कठिनाईयों के शोर में अनकहे डर को छुपा लेती धड़कनों में,


इसी उलझन ने ऐसे मुकाम पर ला खड़ा किया है जीवन की कश्मकश में,

ना तो पीछे लौट सके ना ही सुलझा सके एक ही बार में,

ये उलझन भी बड़ी धिट है सुलझाओ तो फिर नए इरादे ले खड़ी मिलती हैं राह में,

तजुर्बों के सहारे हम भी लढने निकाल पड़े अपने ही विचारों से द्वंद करने में,


फँसे रह गए इसी उलझनों के सुलझने-सुलझाने की मुठभेड़ में,

एहसास तो अब हो रहा है उलझन तो एक पहेली है मात्र

सुलझना तो एक दिन इसे भी है,


फिर क्यों अटके पड़े हैं हम भी अपने ही विस्मित ख्यालों में,

उलझन ही तो है आत्मविश्वास को अपनाओगे तो सुलझ जाएगी कुछ ही क्षणों में !


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