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DHANSHRI KABRA

Abstract Classics Inspirational

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DHANSHRI KABRA

Abstract Classics Inspirational

गुमशुदा रास्तों पर...

गुमशुदा रास्तों पर...

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सूरज (पापा) की छत्रछाया में होकर रोशनी धुंडने चली थी,


चांद (मां) के साथ होते हुए भी सुकून तलाशने चली थी,

चमचमाते सितारें (भाई बहन) को देखते हुए 


आंखों के लिए चमक तलाशने चली थी,

हीरों का जत्था (परिवार) का सहारा होते हुए भी


कोहिनूर की चमक के चाह में भटक रही थी,

अलबेले पंछीयों (दोस्तों) का अनकहा विश्वास होकर भी


 भरोसे को पाने की कोशिश कर रही थी,

रोशन जहां में खुले आसमां को देख 


बंद कमरों में बसने चली थी,

प्रकाशमय दीपकों (अपनों) को साथ ले 


नकारात्मकता के अंधेरे में डूबने चली थी,

पगली थी मैं जो गुमशुदा रास्तों पर गुम होने चली थी !


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