गुस्सा
गुस्सा


जरूरी नहीं गुस्सा बस काम बिगाड़ने वाला हो,
जरूरी नहीं क्रोध बस बेलगाम कदमों सा हो,
जरूरी नहीं गुस्सा बस नापसंद सी आदत सा हो,
जरूरी नहीं क्रोध बस मुसीबतों का पहाड़ सामने लाकर पटकाने सा हो,
जरूरी नहीं गुस्सा बस नकारात्मकता के जंगल सा हो,
ना जाने इस गुस्से के नापसंदीदा और कितने रंग होंगे,
ना जाने इस क्रोध के सैलाब ने जिंदगी के कितने रास्ते कठिनाइयो से भरे होंगे,
होंगे इस गुस्से में भी हजारों ऐब पर यकीन मानिए इस क्रोध में भी लाखों खूबियां हैं,
कभी कभार गुस्सा तितलियों भरे फूलों के बाग सा भी होता है,
मानो तो क्रोध कठोर व्यक्तिमत्व के अनुशासन में छिपे संस्कार सा है,
मानो तो पिता की कड़वे सच भरी डांट में छिपे बचाव सा है,
मानो तो मां के गुस्से भरी बातों में छिपे प्यार सा है,
मानो तो भाई बहन की नोकझोक भरी लड़ाई में छिपे सुकून सा है,
मानो तो यारों की मार वाले गुस्से में छिपे लगाव सा है,
यह गुस्सा भी बड़ा अजीब सच है जनाब जो जिंदगी का एहम हिस्सा है,
चाहो ना चाहो हर हकीकत का एहम किस्सा है।