परछाई
परछाई


अंधेरे ने कहा इंसान से, तू मुझसे कभी जीत ना पाएगा,
मै वो गहन उद्वेग हूं जो तेरी "परछाई" तक को तुझसे छीन लेगा!!
इसी बात को सच मान इंसान ऐसा घबराया के
उस घबराहट को देख उसकी छाया भी बोल पड़ी,
बोली अपने भयावह बेसुद विचारों से परे
अपनी अंतरात्मा को समझ कर तो देखो,
ना समझ सको तो
मेरी बातों की गहराइयों को भाप कर तो देखो,
बोली क्यों खोज रहा आंखो दिखते साये को,
अंतर्मन में झाक तो जरा मिल पाएगा अपनी असली छाया को,
बोली परछाई जान ले अब तू असल में कहा हूं मै,
मै तो हूं वरदान रूप में मिली पिता के वात्सल
्य के साथ,
मै तो हूं ममता की मूरत की गोद में मिली माया के साथ,
मै तो हूं संस्कार रूपी प्रशाद में मिली परिवार की मिठास के साथ,
मै तो हूं सच्चे अपनेपन में मिली भाई बहन के खट्टी मीठी तकरार के साथ,
मै तो हूं वादों में मिली मित्रों के सहयोग भरे अनोखे अंदाज के साथ,
बोली परछाई, अंधेरे के इस छलावे से ना डर इसका तो काम है तेरे आत्मविश्वास को डगमगाना,
इसका भ्रम भी ना जाने मुझ जैसी छाया को पल भर भी तुझसे दूर कर पाना,
बातों की गहराई समझ पाया हो तो संभल जा,
मै तो असल में हूं तेरे अंतर्मन में समाई माता पिता के निश्चल स्नेह के साथ!!