अल्फाज़
अल्फाज़
अल्फ़ाज़ों का क्या है,
अल्फाज़ तो उलझते सुलझते से रहते हैं;
भावों और एहसासों का जामा पहन कर,
कभी शायरी तो कभी कविताओं को रचते हैं।
कभी सुख कभी दुख,
कभी फूल तो कभी काँटो की बात करते हैं;
तो कभी मोहब्बत तो कभी दर्द का भी यही इज़हार करते हैं।
अल्फ़ाज़ों का क्या है,
अल्फाज़ तो उलझते सुलझते से रहते हैं...
पल में अपना और पल में पराया यही तो कर देते हैं,
हुज़ूर ज़रा संभल कर रखिये इन्हें,
क्योंकि सालों का याराना एक पल में बेगाना यही बना देते हैं।
अपने और परायों से दर्द और शिक़वे ये ही बयाँ करते हैं,
ये ही आँसू के साथ मिलकर दिल का बोझ हल्का करते हैं।
वर्ना अल्फ़ाज़ों का क्या है...
कुछ अनकही अनसुनी बातों और कल्पनाओं का जाल भी यही रचते हैं,
स्वर्ग-नरक की बातें तो कभी परियों की कहानी यही तो बतलातें हैंl
यही नज़ाकत तो क़भी नज़रिया बनते हैं,
यही तो जीवन का अनुभव बतलातें हैं।
वर्ना अल्फ़ाज़ों का क्या है...
नेता हो या अभिनेता सब इनकी साज़िश में फँसते हैं,
फिर भला मौसी-मौसा, काका-काकी को क्यों हम आरोप लगाते हैंl
बुरे वक्त में भी जिसने दिलखुश अल्फाज़ निकाले,
वो जैसे हारी बाज़ी जीत के आगे बढ़ता जाये,
वर्ना अल्फ़ाज़ों का क्या है,
अल्फाज़ तो उलझते सुलझते से रहते हैं...