शिक्षकों को प्रणाम
शिक्षकों को प्रणाम
मैं तो शून्य था
तुमने अनंत जगा दिया
मैं तो दुनिया से हारा था
तुमने विजेता बना दिया
मैं तो खाली हाथ आया था
तुमने झोली से भर दिया
मैं तो कंकड़ था
तुमने हीरा बना दिया
मैं तो चला था अनपढ़ गँवार
तुमने विद्वानों की श्रेणी में
ला दिया
मैं तो बिन फूटा बीज था
तुमने फल से लदा पेड़
बना दिया
मैं तो अँधेरों के आगोश में था
बिखरा कहीं
तुमने आकाश में ध्रुव तारा
बना दिया
मेरी ज़िंदगी का मतलब था
कुछ नहीं
तुमने जीने का मकसद
सीखा दिया
तेरे अहसानों को चुका पाना
मेरे बस में नही
बस आभार से तेरे चरणों में
मैंने सर झुका दिया ।