तारीफ ए दोस्त
तारीफ ए दोस्त
उन्होंने कहा कि
तारीफ में कुछ कहते नहीं
तारीफ करने को जुबाँ
उठी ही थी कि ग़ालिब,
तारीफ़ उसकी करूँ या
उसे बनाने वाले की।
बनाने वाले की तारीफ बस
दिल ही दिल में हो गयी
औऱ ये जुबाँ ख़ामोश ही रह गई।
औऱ वो शिकवा करते रह गए
कि उनकी तारीफ में
हम कुछ बोले नहीं।
भला कौन करता है
यूँ गफलत में किसी से बातें
ख़ुदा का अक्स समझ जिन्हें
दिल के आशियाने में सजाया था।
वही दिल की बातों को न समझे
औऱ शिकवा ख़ामोशी का कर गए
कि उनकी तारीफ में हम कुछ बोले नहीं।
न मैं होता तो ख़ुदा होता
न वो होते तो वहीं होता
फिर भी वो न समझे दिल की जुबाँ
औऱ वो शिकवा करते रह गए
कि उनकी तारीफ में हम कुछ बोले नहीं।