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Yashwant Rathore

Romance

4.5  

Yashwant Rathore

Romance

कभी कभी

कभी कभी

1 min
255


कभी कभी सपनों में तेरा आना

और फिर जार जार मेरा रोना

 

तेरे अभाव को कितना साफ़ देख पाता हूं मै

अकेले में तेरे कितने करीब आ जाता हूं मै


घर, समाज का डर वहां नहीं होता

हमारे सिवा और कोई जहां नहीं होता


तब सोचता हूं ,काश वो सब होता ही नहीं

तुझ से दूर मैं बस होता ही नहीं


काश वो समय फिर लौट आए

वक्त कुछ और हम साथ बिताए


तेरे साथ होने से ,जन्म ,जीवन ने लिया था

उन शहरों को, दिन -रातों को मैने जिया था


अब भी जी रहा हूं मैं , हसीं खुशी के साथ

कुछ फूलो के साथ, एक दिल नशी के साथ


फिर क्या है जो बाक़ी रह गया है। 

कुछ तो है जो ख़ाली रह गया है। 


काश कि हम बस अपना सोचते

अपने सपनों का ही घर जोड़ते


अब तुम अपनी दुनिया में रमाई  हो

फिर भी इस कदर मुझ मै समाई हो


लेकिन प्रेम कभी एकाकी नहीं होता

और तुझ सा कहीं साथी नहीं होता!


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