तुम्हारे हिस्से की ज़िन्दगी
तुम्हारे हिस्से की ज़िन्दगी
कभी कभी इस चिलचिलाती धूप में…
जब चलना भी बेहाल हो …
एक बदली आपको घेर लेती हैं
आप को छाया करती है..
तुम्हारे मन को , तन को गीला कर शीतल कर देती हैं ..
ये बस तुम्हारी बदली हैं ..
और लोगो को तुमसे परेशानी है …
तुम्हारे संयोग से , मेल से …
वो नहीं जानते कि तुमने इस बदली का कितना इंतज़ार किया …
हर छाँव को तुमने अपना बसेरा नहीं बनाया …
तुम बरसों से तपती मिट्टी में चले हो ..
अब जब ये मिलन हो रहा है ..
तब इन सब लोगो की परवाह क्यों ,एक बूँद के लिये भी जिनकी ज़बान बाहर निकल आती हैं ..
तुम नंगे बदन के साथ इस बारिश में भीगते हुए इस बदली के साथ एक हो जाओ ….
ये तुम्हारी बदली है ..
तुम्हारा वक़्त है …
तुम्हारे हिस्से का प्यार…
तुम्हारे हिस्से की ज़िंदगी…

