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कुछ भी तो नहीं

कुछ भी तो नहीं

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तुम्हारा कुछ भी तो नहीं है

मेरे पास

न कोई वादा, न इरादा

साथ देने का।


न कोई ख़त, न सपना

न कोई याद,

न दुआ, न फरियाद

न कोई रूमाल, न कोई लॉकेट


न सिगार की खुश्बू,

न आधी जली सिगार

तुम्हारा कुछ भी तो नहीं है

मेरे पास..!


न तुम्हारे साथ बिताये दिन कोई

न मेरी याद में जाग कर

काटी कोई रात

न ख़ामोशी,

न आवाज़ कोई,


न यादों में सुलगती कोई बात

न सिसकते एहसास

कुछ भी नहीं है तुम्हारा

मेरे पास..!


न कोई बर्फीली वादीयों की स्मृति

न किसी समुन्दर किनारे की रेत

न उस पर चलकर,

साथ चले कदमों के निशान


न कोई गुनगुना दिन,

न तपती दोपहर

न किसी जाड़े की कच्ची धूप

न बारिश में भीगे एहसास


न तुम्हारी हँसी, न गहरी चुप्पी

तुम्हारा कुछ भी तो नहीं है

मेरे पास..!


कुछ भी तो नहीं है

मेरे पास,

तुमने कभी कुछ दिया ही नहीं

लेकिन फिर भी न जाने क्यों

तुम छटपटा रहे हो।


मुझसे मुक्त होने के लिए

पर तुम्हारे पास तो में समुची हूँ

बेशुमार

क्या उससे मुक्त हो पाओगे

तुम कभी।।


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