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प्रतिक्षीत तुम आओ तो सही

प्रतिक्षीत तुम आओ तो सही

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परछाई किसकी ह्रदय में

आवाज़ दो आओ तो सही

ज़िंदा है अभी वजूद मेरा

मैं चिरप्रतिक्षीत हूँ तेरी

तुम अमर प्रतिक्षा हो मेरी।


कशमकश की रात चीरकर

कभी मुझसे मिलने, देखने

एक बार तुम आओ तो सही..!


निस्पंद से दिल में छुपे

प्रतिबिंब उजागर हो कभी

मैं तृषित चातक उर छिपाए,


बुलबुले नहीं मिलन के

नैनन में बसा लूँ

रूह में छुपा लूँ

अंग लगा लूँ, प्यास बुझाने

एक बार तुम आओ तो सही..!


तृप्ति प्याले खाली पड़े

छलका दो कोई बिंदु अमोल

चाह मेरी मृदु ऊँगलियों की

छूके महका दो मुझे।


स्वप्न सी सजी नगरी मेरी

राह सूनी चितचोर

सजे राह कुछ झिलमिलाती

एक बार तुम आओ तो सही..!


अँखियन कटोरी छलक रही

नीत बरसे भादों सजल से

मेरी उर्मियों मे झुलता

तेरे दर्श का ये अभाव है।


मैं ओर कोई हूँ नहीं

जो छेड़ी तूने वो झंकार हूँ

एक झलक पाए बिना तेरी

मैं विलीन होना जाऊँ कहीं।


तन साँस छोड़े उसके पहले

एक बार तुम आओ तो सही।।


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