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Yashwant Rathore

Romance Tragedy

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Yashwant Rathore

Romance Tragedy

दिन ये..

दिन ये..

1 min
190



दिन ये कैसे कटे कि हम ही कटते गए

फूल मुरझा गए कि कांटे बढ़ते गए


दूरियां कैसी ये हमारे अंदर हैं

भीड़ बढ़ती गई कि रिश्ते घटते गए


तेरे इंतज़ार में सुबह से शाम हुई...

रुके बस हम रहे कि वो तो चलते गए..


काम तेरे शहर के अब जंचते ही नहीं..

उम्र भर लगे रहे, उधार भी चढ़ते गए..


इन आईनों में ढूंढता हूं बचपन को..

ख़ाक उड़ती रही कि आंख मलते गए..



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