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Yashwant Rathore

Romance Tragedy

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Yashwant Rathore

Romance Tragedy

दिन ये..

दिन ये..

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दिन ये कैसे कटे कि हम ही कटते गए

फूल मुरझा गए कि कांटे बढ़ते गए


दूरियां कैसी ये हमारे अंदर हैं

भीड़ बढ़ती गई कि रिश्ते घटते गए


तेरे इंतज़ार में सुबह से शाम हुई...

रुके बस हम रहे कि वो तो चलते गए..


काम तेरे शहर के अब जंचते ही नहीं..

उम्र भर लगे रहे, उधार भी चढ़ते गए..


इन आईनों में ढूंढता हूं बचपन को..

ख़ाक उड़ती रही कि आंख मलते गए..



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