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Yashwant Rathore

Abstract

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Yashwant Rathore

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दग़ाबाज़

दग़ाबाज़

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लोग उसे दग़ाबाज़ कहते है

एक नहीं हज़ार बार कहते है

लेकिन वो बेहद ख़ूबसूरत है

उसमें लिप्सा है, गहरी प्यास है....

बचपन अभी भी ठहरा है उसके गालों में.

मदहोश इत्र महकता है उसके बालों में..

क्या कहूं उसके बारे में, 

जिसे देखने से मन नहीं भरता....

उसे यौवन चढ़ा है उगते सूरज सा.....

आंखे उसकी मिलते ही आलिंगन कर लेती है..

अधर उसके ओस की बूंद से नम है.

सुना है बहुत धूप सही है उसने..

लेकिन वो कली मुरझाई नही ..

वो खिलने को बेक़रार है

लम्हा लम्हा खुलती है..

लम्हा लम्हा ख़ूबसूरत है..

मैं भी अब चुभने लगा हूं 

साथ जबसे उसके चला हूं

बिंदी का काला जादू क़माल करता है

हर कोई उसका ही क्यों सवाल करता है

बहुत दूर उस चिड़िया का अभी बसेरा है

उसकी यादों ने अब भी कितनो को घेरा है..

वो सब उसे दग़ाबाज़ कहते है

एक नहीं हज़ार बार कहते है

लेकिन वो बेहद ख़ूबसूरत है।



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