रिश्ते
रिश्ते
यहाँ हज़ारो की भीड़ हैं ..
रोज़ नये चेहरे टकरातें हैं ..
कइयों से बात होती हैं , महीनों साथ रहने पर भी कुछ लोगो के साथ व्यवहार नहीं बैठता.
जब कुछ रिश्तों में गहरा लगाव नहीं होता और साथ रहने का बंधन/ दायित्व बोध भी होता हैं तो फिर वो रिश्ते ऑपचारिक व ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करने तक सीमित रह जाते हैं ..
हाथ मिलते हैं पर उनमें रिश्ते की गर्माहट , वो करंट नहीं होता ..
सामाजिक ज्ञान , धार्मिकताएँ, मान्यताये , अंधविश्वास व ग़लत जानकारियाँ , दो इंसानों के आपसी लगाव के बीच भी दिवार का काम करती हैं ..
रिश्तों में गहराई, ख़ुमारी, सुंदरता व जीवन का आनंद तभी लिया जा सकता हैं जब आप सब विचारधाराओं से मुक्त हो ..
जब आप साफ़ देख पाते हो अपने मन को किसी की ओर बहते हुवे ..
तब आपको उसके सुख दुःख की फ़िक्र होने लगती हैं.. आप उसके लिए कुछ करना चाहते हो .. जिससे उसे अच्छा लगे..
आप बुद्धिमता को छोड़ उसके लिये हिम्मती फ़ैसले लेने लगते हों..
एक तरफ़ उसकी सेफ़्टी के लिए डरने लगते हो ..
और वही रिश्ता आप को साथ खड़े रहने की हिम्मत भी दे जाता हैं..
ऐसे ही रिश्तों में कुछ बेहतर होने की सम्भावनाएँ बनती हैं ..
रिश्ते में जीतने आप गहरे होते जाते हैं , नयी परते दिखने लगती हैं ..
जैसे किसी फूल का खिलना … जैसे किसी के मन का दिखना..
सामाजिक मानक जो सुंदरता और एंजॉयमेंट के हैं , उनसे आप ऊपर उठने लगते हैं .. बंधन छूटने लगते हैं .. आप आज़ाद महसूस करने लगते हैं ..जैसे सुबह के 5 बजे हरे भरे गार्डन में गहरी स्वास आपके फेफड़ो को तरोताज़ा कर रही हो..
किसी को देखने भर से जब सुकून मिलने लगता हैं , जब किसी के मान्यता की आवश्यकता नहीं पड़ती..
जब किसी के साथ घंटों बिताना और बातें करते जाना आपको आनंदित कर जाता हैं ..
जब आपको होने का मूल्य समझ आने लगता हैं ..
जब आप जीते हो , जीवन को महसूस कर पाते हो ..
वो लाइंस कितनी सार्थक लगती हैं -“ ठहरे हुवे पलों में ज़माने बिताएँ हैं …”
