भगवान ऐसी माँ किसी को न दे
भगवान ऐसी माँ किसी को न दे
हे भगवान देखो कैसी माँ है,
परवाह नहीं बच्चों की !
हाँ तो क्या हुआ सपने हैं तो,
कुचल डालो इन्हें !
पहचान ! अरे कौन सी पहचान,
ये घर ही इसकी पहचान है !
अपनों की फ़िक्र नहीं, चल पड़ती है,
जाने वह क्या-क्या करती हैं !
भगवान ऐसी माँ किसी को न दे,
पत्थर का दिल है जी... पत्थर का,
केसे मासूम बच्चों को छोड़ जाती हैं !
औरत है या मुसीबत,
पती की सेवा की फ़िक्र ही नहीं !
ज़मीर ही नहीं है साहब,
अंदर से खोखली हैं !
कौन हैं ये जो मेरे कंधे को
सहला रहा हैं ?
काँपते हाथों से जो ताने लिख रहीं हूँ
उसे रोक रहा है।
मम्मा ! क्या आप को पता है कि
मैरी कॉम भी ट्रेनिंग के लिए जाती थी !
छोटे-छोटे बच्चे घर छोड़ के जाना पड़ता था,
वो भी रोती होगी ना आप ही की तरह ?
निक्की ! सुन अपनी मम्मा मैरी कॉम हैं !
टपकते आँसू जैसे इन स्याही से
लिखें शब्दों को मिटा रहे हैं,
वैसे ही मेरे बच्चों की समझदारी,
समझदारों के तानों को।।
