इन सर्द रातों में
इन सर्द रातों में
इन सर्द रातों में
जब मन में मंथन होता है,
कैसे बेखबर बचपन से
खबरदार ये जीवन होता है।
वो ठहाके, वो बदतमीज बात,
बेफिक्र हरकत,वो मदमस्त चाल
जब ना कोई भेद था ना कोई मतभेद
भाई-बहन के रिश्ते में ना कोई छेद।
सब अच्छा था, सब पावन था
जब तक विचारों में सुस्ती थी
जैसे ही ली अंगड़ाई इसने,
ये हमारी बदसलूकी थी।
चलो छोड़ो ये बचपन की बातों को,
अब सीखों ज़रा दुनियादारी को
अब सब समझदार हो गए हैं,
सबकी हरकतों के ठेकेदार हो गए हैं।
अब ठहाके मुस्कुराहटों में सिमटे हैं,
बातें तमीज की चाशनी में लिपटी हैं,
हरकत केवल दिल में है
और चाल पर चलन की नजर।
पर ये क्या
कोई भेद नहीं सिर्फ मतभेद हैं
न कुछ अच्छा है न हम पावन है
मन में तूफान है बस।।
पर इन सर्द रातों में
जब मन में मंथन होता है
समझा देती हूँ उसे कि ये
तूफान भी थम जाएगा।
कोई विचार न आएगा,
फिर सब अच्छा हो जाएगा,
हम भी कठपुतली बन जाएंगे।
पर इन सर्द रातों में
ये मन मानता नहीं
हारता नहीं।
और बस मंथन में
रातें और उम्मीदों में
दिन गुजरते हैं !