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Ratna Pandey

Inspirational

5.0  

Ratna Pandey

Inspirational

गाँव हमारे वापस दो

गाँव हमारे वापस दो

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नहीं चाहिये शहर तुम्हारे गाँव हमारे वापस दो,

नहीं चाहिये ऊँची इमारत खेत हमारे वापस दो,

नहीं उगेंगी फसलें गर तो पेट को कैसे समझाओगे,

ऊँची इमारत के अंदर क्या तुम भूखे ही सो जाओगे,

निकल नहीं पाओगे घर से तब फेफड़ों को कैसे बचाओगे,

नहीं चाहिये प्रदूषण इतना हमें शुद्ध हवा में जीने दो,

नहीं चाहिये शहर तुम्हारे गाँव हमारे वापस दो।


छोटे गाँव में हम बसते हैं किन्तु,

संग साथ सब को लेकर चलते हैं,

एकाकी जीवन तुम्हारा कितना नीरस लगता है,

जीवन की आपाधापी में सारा वक़्त गुजरता है,

नन्हें सुकुमारों का जीवन भी,

जहाँ आया की गोदी में पलता हो,

नहीं चाहिये ऐसा जीवन हमें गाँवों में ही रहने दो,

नहीं चाहिये शहर तुम्हारे गाँव हमारे वापस दो।


रूखा सूखा शहर तुम्हारा ना झरनों का बहना,

नहीं सुनाई देता आँगन में पंछीओं का चहकना,

काट काट कर वृक्षों को हरियाली का घटना,

संभव है जीवन का अल्पायु में ही सिमटना,

जो कुछ तुमने नष्ट किया,

उसकी पुनः प्राप्ति नहीं हो पायेगी,

प्रकृति पर जो प्रहार किया,

वह सहन नहीं कर पायेगी,

और चाहकर भी भविष्य में वह हमारी,

संतानों को बचा नहीं पायेगी,

इसी लिये मैं कहती हूँ,

नहीं चाहिये शहर तुम्हारे गाँव हमारे वापस दो।


प्रगति चाहिये सबको ही,

किन्तु प्रकृति का नाश ना होने दो,

स्वस्थ जीवन और दीर्घायु गर चाहिये,

तो प्रकृति को देवतुल्य ही रहने दो नहीं चाहिये शहर तुम्हारे गाँव हमारे वापस दो।,


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