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पसीना और मुस्कान

पसीना और मुस्कान

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चेहरे पर सराबोर

मिश्रित युगल रुप

पसीना और मुस्कान,


एक-दूसरे के पूरक बने हैं जैसे

चमकता है जो मोती बनकर

ये पसीना नहीं

हाड़-तोड़ मेहनत से उपजा मोती है।


हिम्मत को पिघलाया है

शिराओं मे बहते लहू को जलाया है

माँसपेशियों के कसरत से

ये छन कर निकल आया है।


बूँद-बूँद अथक परिश्रम से

तराशा हुआ है

इसी ओज से चेहरे भी चमक गए

मुस्कान बनकर।


ऐसा नहीं कि दर्द नहीं होता

पर ज़िंदगी की जरूरतों से

कौन निकल पाया है।


दो रोटी और बदन ढकने को

दो कपड़े

अभाव का प्रभाव

जद्दोजहद करती साँसें,


दिन भर की अथक

ईमानदार मेहनत

देती है चंद साँसें राहत की

दो निवाले भूखे पेट को

और एक सुकून भरी नींद

यही दिनचर्या है

लेकिन.....


बहुत सुकून है शांति है

और इसी से मेरी

खिलती मुस्कान है।।


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