फिर से चल दे वो नाव मेरी
फिर से चल दे वो नाव मेरी
घिरता सावन, उड़ता बादल
चमकीले से ख्वाब लिए
बूँदों के संग जब बही हवा
कुछ पुराने सवाल लिए।
घर के आँगन में
नाव वही
पर जैसे वो सोया सा है
फिर वही शाम दिखती दिन में
पर जैसे कुछ खोया सा है।
मन करता है
उसे जगाऊँ, उसे हिलाऊँ
उठ जा रे वो नाव मेरे।
फिर से चल दे, जलधारा में !
जैसे कभी चली थी तू
माटी की सोंधी खुशबू में
जैसे कभी बही थी तू।
फिर से वही तू तान लिए
अम्बर का वितान लिए
प्रस्फुटित उमंगो का
नव सिंचित तू वरदान लिए।
सोच न तू सामने की
सागर या महासागर है
या फिर तपन अपार लिए
मानो कोई बड़वानल है।
बिता वक़्त और बीती अवधि
ये तो बस दुनिया का छल है
अंदर तेरे आज भी
बालपन वही निश्छल है।
तू सोच वही आँगन का
बस थोडा सा ठहरा जल है
रिमझिम रिमझिम बूँदें है
और गरजते बादल है।
इस बारिश में फिर से तू
लेके फिर वो तान वही
चल दे वो नाव मेरी
कहीं पत्थर बन जाये नहीं।।
