बचपन ढूँढ रहा हूँ आज
बचपन ढूँढ रहा हूँ आज
यौवन के काँधे पे बैठ
बचपन ढूँढ रहा हूँ आज
पिछली रात जो बरसी थी
वो शबनम ढूँढ रहा हूँ आज
समय की रेख पे चलता
कभी सोचा ना समझा था
विधि के लेख को हमनें
कभी देखा ना परखा था
यूँ ही जो भीड़ से निकला
बहुत ही दूर हो आया
की अब दिखती नहीं मुझको
कहीं मेरी भी अब छाया
की अब वो याद क्यों आते
जिन्हे मैं छोड़ आया हूँ
वही बंधन मुझे खींचे
जिन्हे मैं तोड़ आया हूँ
एक क़तरा जो शायद था
दिल का छोड़ आया हूँ
फिर से बाँध सकूँ उसको
वो कतरन ढूँढ रहा हूँ आज
पिछली रात जो बरसी थी
वो शबनम ढूँढ रहा हूँ आज
कभी रिंदों की महफ़िल से
बिना पिये ही लौटे थे
बज़्म ज़िंदा थी फिर भी
बिना जिए ही लौटे थे
लफ्जों से जो छूटा था
वो प्याला माँगता है क्या
जो भी बीत गया उससे
ना जाने राब्ता है क्या
जहाँ वो जाम था छलका
वहीं मैं लौट आया हूँ
फिर से भींग सकूँ जिसमे
वो मधुवन ढूँढ रहा हूँ आज
पिछली रात जो बरसी थी
वो शबनम ढूँढ रहा हूँ आजम
