STORYMIRROR

बचपन ढूँढ रहा हूँ आज

बचपन ढूँढ रहा हूँ आज

1 min
332


यौवन के काँधे पे बैठ

बचपन ढूँढ रहा हूँ आज

पिछली रात जो बरसी थी

वो शबनम ढूँढ रहा हूँ आज


समय की रेख पे चलता

कभी सोचा ना समझा था

विधि के लेख को हमनें

कभी देखा ना परखा था


यूँ ही जो भीड़ से निकला

बहुत ही दूर हो आया

की अब दिखती नहीं मुझको

कहीं मेरी भी अब छाया



की अब वो याद क्यों आते

जिन्हे मैं छोड़ आया हूँ

वही बंधन मुझे खींचे

जिन्हे मैं तोड़ आया हूँ

एक क़तरा जो शायद था

दिल का छोड़ आया हूँ

फिर से बाँध सकूँ उसको

वो कतरन ढूँढ रहा हूँ आज


पिछली रात जो बरसी थी

वो शबनम ढूँढ रहा हूँ आज


कभी रिंदों की महफ़िल से

बिना पिये ही लौटे थे

बज़्म ज़िंदा थी फिर भी

बिना जिए ही लौटे थे


लफ्जों से जो छूटा था

वो प्याला माँगता है क्या

जो भी बीत गया उससे

ना जाने राब्ता है क्या


जहाँ वो जाम था छलका

वहीं मैं लौट आया हूँ

फिर से भींग सकूँ जिसमे

वो मधुवन ढूँढ रहा हूँ आज


पिछली रात जो बरसी थी

वो शबनम ढूँढ रहा हूँ आजम







Rate this content
Log in