महादेव
महादेव
आदि है अनंत है वो काल का भी काल है
सौम्य है उतना ही वो जितना की विकराल है।
शुष्क जटाजूट से प्रस्फुटित है निर्झरी
लेप चहुँ भस्म का और वस्त्र है दिगम्बरी
और आभूषणों के नाम पे बस सर्पों का जाल है
आदि है अनंत है वो काल का भी काल है।
कैलाश पे आसीन जो निश्छल और अचल
लोक है जिसका कहीं हिमगिरि सम अटल
पात्र के रूप में सुसज्जित कपाल है
आदि है अनंत है वो काल का भी काल है।
खोजते माणिक्य सभी, जब मंथन की लूट में
योगी सारा पी गया ये, विष वहीं घूँट में
कंठ नीलकंठ वो, चंद्र शोभित भाल है
आदि है अनंत है वो काल का भी काल है।
धूनी को रमा के मस्त, गंगा की धार ले
जिसे सब त्याग दे, उसको भी स्वीकार ले
भोला ह्रदय जिसका, पर नयनों में ज्वाल है
आदि है अनंत है वो काल का भी काल है।
गृहस्थ भी, वैरागी भी, वो देवों का देव है
ब्रह्माण्ड का नियंता, जो स्वयं महादेव है
जल में सम शोभित निर्विघ्न मराल है
आदि है अनंत है वो काल का भी काल है।।
