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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy

धागा

धागा

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धागे निकले है, घर से लेकर धागा

कोई न पूंछे वो है, कितना अभागा


वह पूंछता, क्यों ज़माना तोड़ता है

जबकि वो तो सबको ही जोड़ता है


जैसे ही किसी का स्वार्थ पूरा हुआ

उसे ही वह तोड़ देता है, स्नेह धागा


यही दुनिया की सच्चाई, रे कागा

सब रिश्ते स्वार्थ से जुड़े हुए, काका


गर जिंदगी में चाहिए, धूम-धड़ाका

छोड़, स्वार्थी लोगो का भीड़-भड़ाका


चोर तभी सुई से निकलकर है, भागा

सुई ने धागे को दिया, बेमतलब शाका


जो धागा होता है, दुनिया मे लड़ाका

वो करता है, सँघर्ष बहुत बड़ा बांका


वो मिल, बनाता, रस्सी का वो नांका

जो पत्थर पर खींच देता, निशां खांका


आओ कर्मो से बना दे, हम वो इलाका

जो महकाये, शूलों का भी, कोई बागा।


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