बगावत
बगावत
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सुन ले यह दुनिया, नहीं करूंगा मैं खुद से बग़ावत।
नहीं डरता मैं चाहे पूरा ज़माना रखे मुझसे अदावत।
क्यूं जीयूं मैं समाज की रूढ़िवादी बंदिशों में रहकर।
क्यूं रहूं दकियानूसी घुटन भरी साजिशों को सहकर।
क्या दिया समाज ने, सर झुकाकर जीने की राह पर।
मैं तो चलूंगा अपनी मर्ज़ी से, अपनी बनाई हुई डगर।
बग़ावत की है मैंने, खुद की पुरानी पहचान से ऊबकर।
जीयूंगा मैं अब, अपनी खुशियों भरी दुनिया में डूबकर।