STORYMIRROR

Dr Narendra Kumar Patel

Abstract Inspirational

4  

Dr Narendra Kumar Patel

Abstract Inspirational

दिल का क़त्ल करके

दिल का क़त्ल करके

1 min
255

दिल का क़त्ल करके मुस्कुरा रहा है वो

मुझपे बिजलियां गिरा के जा रहा है वो।


गर्दिशों की छा गयी अब तो बदरियां

मयकदे में जा के डग-मगा रहा है वो।


बेखुदी में दर्द का तोहफा दिया मुझे

बेवफा इल्ज़ाम सर लगा रहा है वो।


जिसकी चाहतो में धड़कने हैं चल रही

बेबसी के आग में जला रहा है वो।


'साहिल' न लग सके सागर की कश्तियाँ

इसलिए तूफान भी बुला रहा है वो।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract