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Dr Narendra Kumar Patel

Abstract

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Dr Narendra Kumar Patel

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पतंगा शमा पर धुआँ हो गया

पतंगा शमा पर धुआँ हो गया

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पतंगा शमां पर फ़ना हो गया। 

जिस्म खाक ,रुह धुआँ हो गया।। 


धुआँ बन मुहब्बत फ़साना हुआ। 

फ़साने में मिटकर, जवां हो गया।। 


दीया बनक'र रोशन किया रात भर। 

सहर फूंक से फिर धुआँ हो गया।। 


शहर गाँव हर तरफ उठता धुआँ। 

ख़ुदा इस जहाँ को क्या हो गया।। 


रहम कर ख़ुदा नाव 'साहिल' लगा। 

हरा था जो अब तक धुआँ हो गया।। 



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