ग़ज़ल
ग़ज़ल
रोशनी ना मिली थी, डगर के लिए।
रात भर मैं जगा हूँ, सहर के लिए।।
मैं तड़पता रहा, रात भर इस क़दर।
दर्द कम न हुआ, एक पहर के लिए।।
रात भर मयकदे, जाम पीता रहा।
मैं उसे भूल जाऊँ, असर के लिए।।
बेवफा जख़्म दे, नींद में सो गयी।
जख़्म सहता रहा, मैं ज़हर के लिए।।
होंठ हँसते रहे, दम निकल जाने तक।
हँस रहा हूँ, मैं जाने जिगर के लिए।।