Dr Narendra Kumar Patel
Tragedy
जख्म लिए मजदूर चलेंगे!
हम तुम कितना दूर चलेंगे!
पैर फफोले पूछ रहे हैं,
कब तक हम मजबूर चलेंगे!
अंधकार में प्...
पतंगा शमा पर ...
मुक्तक
माँ
ग़ज़ल
आबोहवा में ज़...
मुस्कुराने का...
"नन्हा सा पौध...
वेतन के लिए, जद्दोजहद करता रहता है। वेतन के लिए, जद्दोजहद करता रहता है।
भावनाशून्य, एक बेहद डरावना मनुष्य नहीं सिर्फ पशु। भावनाशून्य, एक बेहद डरावना मनुष्य नहीं सिर्फ पशु।
खिड़की भी बंद करनी पड़ी और सोने का उपक्रम करने लगे न चाहते हुए भी। खिड़की भी बंद करनी पड़ी और सोने का उपक्रम करने लगे न चाहते हुए भी।
कभी कभी दोस्ती की आड़ में लोग फायदा उठा लेते है कभी कभी दोस्ती की आड़ में लोग फायदा उठा लेते है
दुनियां मुझको न ताने दो मुझे दर्द के साज बजाने दो। दुनियां मुझको न ताने दो मुझे दर्द के साज बजाने दो।
बचपन मे देखा था गौरेया एक चिड़िया थी प्यारी। बचपन मे देखा था गौरेया एक चिड़िया थी प्यारी।
ऊँच नीच, अमीर गरीब में भेद ही भेद हैं ये भरम आज टूटे हुए हैं। ऊँच नीच, अमीर गरीब में भेद ही भेद हैं ये भरम आज टूटे हुए हैं।
यूंँ तो ज़िन्दगी हम अपनी शर्तों पर जिए हैं बहुत अफ़सोस होता है। यूंँ तो ज़िन्दगी हम अपनी शर्तों पर जिए हैं बहुत अफ़सोस होता है।
कौन था वो राहू जिसने हमेशा के लिए ग्रहण लगा दिया इस चांद से चेहरे पर. कौन था वो राहू जिसने हमेशा के लिए ग्रहण लगा दिया इस चांद से चेहरे पर.
कभी पत्थर बना मन कभी पेड़ बन तना। यह जीवन तो एक दुखों का जंगल है घना। कभी पत्थर बना मन कभी पेड़ बन तना। यह जीवन तो एक दुखों का जंगल है घना।
जो खुद घबराया, भयभीत रहता है तुम्हारा क्या भला करेगा। जो खुद घबराया, भयभीत रहता है तुम्हारा क्या भला करेगा।
खुद को कई बार मैंने तोड़ कर देखा बहुत लोगों से नाता जोड़ कर देखा खुद को कई बार मैंने तोड़ कर देखा बहुत लोगों से नाता जोड़ कर देखा
हम न रहे, बन्दरों की तरह नकल करते रहे। अपनी बोली भूलकर। हम न रहे, बन्दरों की तरह नकल करते रहे। अपनी बोली भूलकर।
कहूँ कैसे न कोई आप सा आया कभी, कहूँ कैसे न कोई आप सा आया कभी,
आ रहा हूं अपने घर, अपने गाँव आपकी छांव में। आ रहा हूं अपने घर, अपने गाँव आपकी छांव में।
परिचय के नाम पर क्यों हिस्सों में विभाजित कर सीमा में बाँध दिया जाता है आदमी। परिचय के नाम पर क्यों हिस्सों में विभाजित कर सीमा में बाँध दिया जाता है आदमी...
प्रेम का धागा चटख गया सच्चा सभी को खटक गया प्रेम का धागा चटख गया सच्चा सभी को खटक गया
जब जब सजती है तुम्हारी महफिलें हमारी जी भर के रुसवाई होती है। जब जब सजती है तुम्हारी महफिलें हमारी जी भर के रुसवाई होती है।
जनता हैं, मुर्गा नहीं हैं उठा कर मत फेंको मुर्दा नहीं हैं। जनता हैं, मुर्गा नहीं हैं उठा कर मत फेंको मुर्दा नहीं हैं।
मसलों का कुछ हल होना चाहिए तुम मसाला भरो मसलों में तो फिर क्या करें। मसलों का कुछ हल होना चाहिए तुम मसाला भरो मसलों में तो फिर क्या करें।