अधूरी मोहब्बत
अधूरी मोहब्बत
दो लोग जो मिले थे कभी
एक सफर में मंजिल बनकर
आज राहें जुदा हैं
रहते हैं कहीं अजनबी बनकर
दो लोग जो मिले थें कभी
एक सफर में मंजिल बनकर।
दोष वक़्त या हालत का था
ये मालूम तो नहीं बेहतर
पर हादसा गलतफहमी का भी हुआ था
रिश्तों में ख़ुदकुशी बनकर
दो लोग जो मिले थे कभी
एक सफर में मंजिल बनकर।
डोर कच्ची थी ये बात पक्की तो नहीं
जान हथेली पर रखते थें, रूह की भी थी खबर
आँधी वक़्त की थी या
ज़रूरत से ज़्यादा मोहब्बत का था ये असर
दो लोग जो मिले थे कभी
एक सफर में मंज़िल बनकर।
आज जब सामना हुआ
तो साफ कह रही थी नज़र
तुम्हे भूले नहीं हैं आज तक
जगह तुम्हारी आज भी
ना ले सका कोई अब तलक़
तड़प का साफ था मंज़र
आँखों में उतरता दरिया बनकर
दो लोग जो मिले थे कभी
एक सफर में मंज़िल बनकर।