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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

आहिस्ता आहिस्ता

आहिस्ता आहिस्ता

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आहिस्ता आहिस्ता वो बदलते रहे,

हम प्यार को रिश्ता समझते रहे,


हुआ न कभी एहसास हमें जफ़ा का,

वो दगाबाज निकले जिनसे प्यार हुआ।


अब रह रह कर याद करने की आदत ने,

बदल कर रख दिया प्यार की शहादत ने,


ना वो मिलते न हम याद करते उन्हें कभी,

कभी पल पल गुजरी जिंदगी नजाकत से।


प्यार की खातिर कभी जिंदगी मे गम न मनाये,

अब प्यार में छलावा खुद अपने न समझ पाये।


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