मैं स्त्री हूं
मैं स्त्री हूं


एक जीवन पनपता है मेरे उदर में
क्या मैं ईश्वर हूं ?
भूख मिटाती हूं मैं, तन की या मन की
क्या मैं ब्रह्म हूं ?
बांध कर रखती हूं समाज को
क्या मैं बंधन हूं ?
मर्यादा में रखती हूं सब
क्या मैं संयम हूं ?
हर मुसीबत के लिए तैयार हूं
क्या मैं दुर्गा हूं ?
काव्य, कथा, ग्रंथ मेरे लिए हैं
क्या मैं सरस्वती हूं ?
मुझ से होती हैं काम कलाएं आरंभ
क्या मैं कामायनी हूं ?
मुझ से होता दिन आरंभ
क्या मैं सूर्य हूं ?
दुनिया सोती मेरे आगोश में
क्या मैं निशा हूं ?
मैं पूर्ण हूं, लगभग नहीं
मैं तत्पर हूं, बरबस नहीं
मैं, मां, बहन, प्रेमिका, पत्नी हूं
जो तुम सोच सकते हो, हां मैं वही हूं
मैं, शक्ति हूं मैं ज्वाला हूं
मैं भूख शांत करने वाला निवाला हूं
मैं भूत, वर्तमान भविष्य हूं
मैं, कल, आज अभी हूं
मैं स्त्री हूं...।