बरसात की एक शाम
बरसात की एक शाम
अमा मियां, कमाल करते हो !!!
हम उन्हें भूल जाएं, तौबा तौबा तौबा
ये कैसा सवाल करते हो ???
क्या भूला है कोई, सांस लेना?
या भूल गया कोई, जी भर जीना ?
दिल कभी भूला है धड़कना ?
या भूला है, सूरज रोज चमकना?
नहीं भूलते ना सितारे, ढले शाम आना।
कभी भूलता है, चांद सुबह होते ही छिप जाना?
क्या, हवा चलने का तरीका भूली है ?
या, नदी बहने का सलीका भूली है?
क्या भूला है, सरगम का सुर से प्यार?
क्या भूली है, आना फूलों पे बहार?
भूल जाएं कैसे, वो बारिश का पानी?
कैसे भूल जाएं वो भीगती जवानी,?
वो सड़क पर
अफरा तफरी का आलम!!
कैसे भूल जाएं वो शाम सुहानी, ओ जालिम ?
वो सफ़ेद कुर्ती में तराशा भीगा बदन...
चोटी जैसे, काला फन लिपटा हो संग चंदन...
वो चांदी से बदन पर सरकती मचलती, झिलमिल करती बूंदें
वो उड़ना हवा के साथ चुनरी का जैसे कोई पवन मस्त हो झूमें
वो चमकना बिजली का, और तुम्हारा मेरे करीब सटक जाना...
सांसो का मेरे गले में अटक जाना
वो नजरें उठा के देखना, बेचैनी से
वो तार मेरे दिल के, एक दम खटक जाना
वो शाम,वो साथ, वो महक, वो चहक, बोलो कैसे भूल जाएं
इससे बेहतर साहिब, चलो यार हम मर जाएं...