गोवर्धन धारी
गोवर्धन धारी
घनघोर वर्षा से मथुरा की प्रजा पर संकट आया।
श्रीकृष्ण की मथुरा में चहुं ओर अंधियारा छाया।
बदरा घिर आये, आंधी आई एवं बवंडर आया।
जल भी निर्लज्ज बरस बरस कर प्रलय लाया।
थमने का नाम ना ले, दामिनी भी चमकी जाये।
मथुरा की निरीह जनता वर्षा से त्रस्त हुई जाये।
मथुरा की धरती के लिए भयानक स्थिति आई।
जब किसी के बचने की युक्ति समझ नहीं आई।
मुरलीधर ने एक प्रण लिया सब के प्राण बचाने का।
आग्रह किया सबसे गोवर्धन पर्वत के पास आने का।
तत्पश्चात् अपनी एक उँगली पर पर्वत को उठाया।
सभी अचंभित हुये एवं अपने नेत्रों से अश्रु बहाया।
कन्हैया के निवेदन पर सभी पर्वत के नीचे आ गये।
उसके पश्चात् श्रीकृष्ण गोवर्धनधारी का नाम पा गये।
गोवर्धन को उँगली पर उठाकर सबके प्राण बचाये।
गोवर्धनधारी बनके मथुरावासियों के ईश कहलाये।