दोस्त......दोस्ती
दोस्त......दोस्ती
जन्नत की मौत के लिए क्यों लड़े
अगर जहन्नुम में साथ मस्ती का जहाँ है
दोस्तों के साथ हारे तो गम नहीं
अकेली जीत में वो बात कहाँ है !
मजे-मजे में मजे ले जाये
दोस्ती वो कामिनी वफ़ा है
हर शाम जश्न के लिए तैयार सब
क्या पता कब तक साथ बंधा है !
जानेमन होने का एहसास न दे
दोस्तों की बातों में वो दुआ है
इश्क तो फ़िर भी ग़मगीन कर देगा
दोस्ती से सदा खुशनुमा समां है !
आज जिन्दगी बहुत कुछ माँगती है
दोस्ती मे भी स्वार्थ छिपा है
इतने बेरुखे क्यों बने हम
दिल से देखेंगे तो दोस्त
आज भी वही खड़ा है !!