क्रांति...
क्रांति...
आखर-आखर में तो प्रजा जानती
अन्न दुग्ध में ये नाम छानती
गीली चिंगारी से सुलगती
बस ये गीले नैन मांगती
सत्तावन में थी घटी क्रांति
हमने तो सिर्फ सुनी क्रांति!
१५ अगस्त की मुंडेर फांदती
हर दिवस पे बस छुट्टी मांगती
ढाई आखर की ये भी प्रेम भी
१४ फ़रवरी को अब रंगती क्रांति
हमने तो सिर्फ सुनी क्रांति!
चीनी की महंगी मिठास बाँटती
विधायक की सारी विधि गाँठती
जनता जनार्दन बस ताली पीट रही
गेंद बल्ले से पिटी क्रांति
हमने तो सिर्फ सुनी क्रांति !
चुल्लू भर पानी में ताकती
राम रहीम दलित में झांकती
बदलाव की जननी चीत्कार भर रही
फूले नथुनों में बस बंधी क्रांति
हमने तो सिर्फ सुनी क्रांति!
