क्यों माँ तुम ऐसी होती हो !
क्यों माँ तुम ऐसी होती हो !
भूल तुम्हे मैं जाता हूँ
जब दोस्तो कि मण्डली बुलाती है
तुम्हारी ममता का ध्यान तबही आता है
जब भूख मुझे सताती है
जब पेट मेरा भर जाये
जब नींद मेरी लोरी गाती है
तब माँ तुम खाती हो तुम सोती हो
क्यों माँ तुम ऐसी होती हो !!!
मैं चिड़चिड़ाया भी लड़ा तुमसे
समझ लेता हूँ कभी कभी खुद को बड़ा तुमसे
थप्पड़ से समझाती तुम
भटकी राह को सही दिशा दिखातीं तुम
झूठे बड़प्पन का अपने अफसोस मुझे नही होता है
पर तुम हाथ उठाकर दुखी होती हो
क्यों माँ तुम ऐसी होती हो !!!
बड़े बड़े सपने देखता हूँ
भावनाओ को कभी तुम्हारी उसमे रोंद्ता हूँ
तुम्हारी भी एक शख्सियत है खुद की
ये कभी नही सोचता हूँ
आज चलता हूँ जब सर उठा के
तो एहसास नहीं ये होता है
मेरी सुख समृद्धि के खातिर
तुम अपने सपने खोती हो
क्यों माँ तुम ऐसी होती हो !!!!
