पहली तालीम
पहली तालीम
इश्क़ पनपता है तो, बचपन सी होती है तासीर
बड़े होने की बेचैनी, गुस्ताखी करने में बेनज़ीर
दहलीज़ थी उम्र की, या नज़रों का तौफ़ीक़ था
छज्जे पे था दुप्पटे का साया, लगा यहीं करीब था
इज़हार इक़रार थे पेचीदा लफ्ज़ जनाब
नज़रों और हया में ही कर दिया हमने उनका हिसाब
पहली गुफ्तगू में कर बैठा वो क़त्ल-ए-आम
मज़हब जानकर सिहर उठा हुस्न वाला साया नादान
मज़हब हँस रहा इक छोर पे, धर्म ताक रहा उस ओर से
मासूम इश्क़ छटपटाकर पूछा, क्यों बांधना ताबीज़ कलावे की डोर से
वो मुस्कराहट में तंज कसके, अश्क़ से जवाब गिरा गयी
अदा ये हुस्न की होती है, इश्क़ की पहली तालीम पढ़ा गयी।

