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PARNEESH MISHRA

Romance

5.0  

PARNEESH MISHRA

Romance

शायर की मोहब्बत!

शायर की मोहब्बत!

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जो होना था उसकी फरमाइश थी

जो हुआ उसकी कहाँ ख़्वाहिश थी

साकी से नफ़रत करने लगा शायर

भूल गया होश में ही चोट खाई थी!


ख़ता तुझसे कभी होती नहीं

फिर भी फरियाद तेरी वो सुनती नहीं

अब तो मोहब्बत कर बैठा शायर

पहले सोचना था जब ये आग लगायी थी!


तुझे उसे कहना बहुत कुछ है

लफ्ज़ों की तुझमें कहाँ कमी है

फिर भी खामोश रहता है शायर

सब बेवफ़ा, जिसने साथ दिया तन्हाई थी!


इल्म होता नहीं उसको बेकरारी का

फ़िजूल ही लुत्फ़ उठाती है शायरी का

एक इकरार करता है आज शायर

अल्फाज़ की दुनिया उसी के लिए सजाई थी!



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