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PARNEESH MISHRA

Drama

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PARNEESH MISHRA

Drama

रात का इंतज़ार...

रात का इंतज़ार...

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न मुकम्मल पाने की ख़्वाहिश है

न बेहिसाब अय्याशी की फरमाइश है


होश की फिज़ा से घुटन होती है

शाम होते ही प्याले गटकता हूँ


चाँद की राह तकता हूँ

मैं रात का इंतज़ार करता हूँ


धूप में जिंदगी के संघर्ष की तपन है

छाँव दूर खड़ी है अपने में मग्न है


दिन में देखो जिन्दगी पहेली है

रात होती है तो जिंदगी को समझता हूँ


चाँद की राह तकता हूँ

मैं रात का इंतज़ार करता हूँ


दिन में परछाई की वफ़ा सबको मिलती नहीं

दिल नहीं लगा हमसे तो परछाई की गलती नहीं


रात में तो हर प्रेमी रोता है

कहता है अंधेरे में परछाईं को तरसता हूँ


चाँद की राह तकता हूँ

मैं रात का इंतज़ार करता हूँ...


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