सच बताओ..!
सच बताओ..!
सुनो ना..!
सच सच बताओ,
क्या सचमुच तुम साथ हो मेरे,
गर हाँ..!
तो फिर कैसा साथ है ये..?
जिस रिश्ते में प्यार ना हो वो कैसा रिश्ता..?
बताओगे क्या..!
मैं कब तक संभालूँ तुमको यूँ ही अकेले,
कहाँ है सफ़र कहाँ इसकी मंज़िल दिखेगी
हम साथ तो हैं पर साथ नहीं हम,
नहीं हमारे सोच एक ना हममें है एक जुटता,
मैं कब तक संभालूँ तुमको यूँ ही अकेले.. !
कहाँ है वो जिसे तुम कहते थे अपना परिवार
कहाँ है विश्वास की वो डोर जो मजबूत बहुत थी
ना हम हम हैं ना तुम तुम हो तो फिर कैसा साथ
साथी मेरे ये ना साथ है ना प्यार और ना परिवार
बस, रिश्तों की रस्म अदायगी है जिसे निभा रहे हम
दुनिया के नज़र से बेहतरीन कपल नज़र आ रहे हैं ।
मैं कब तक संभालूँ तुमको यूँ ही अकेले साथी मेरे..?
