तो अच्छा....
तो अच्छा....
एक साँस अगर खुल कर, मिल जाये तो अच्छा,
इस रूह को अगर सुकून, छू जाए तो अच्छा।
रास्तों पर बिछी धुंध, धुंधल जाए तो अच्छा,
मंज़िल का कोई अक्स, उभर आए तो अच्छा।
एक साँस अगर खुल कर……..
वैसे तो अकेला ही, हर शख़्स है इस सफर में,
मिलते ही बिछड़ जाते है, कई लोग बसर में,
यूँ तो थोड़ी-थोड़ी सफर, कइयों के साथ कटी है,
एक साथी अंजाम तक, मिल जाय तो अच्छा।
एक साँस अगर खुल कर……..
मंज़िल की राह में, भला क्या है? बुरा क्या ?
खुशियों की चाह में, भला क्या है? बुरा क्या ?
मराहील का ज़िक्र ही, हौसलों का बयाँ है,
हर राह ही, मन चाह सी, बन जाये तो अच्छा।
एक साँस अगर खुल कर……..