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Anita Sharma

Drama Tragedy

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Anita Sharma

Drama Tragedy

घात

घात

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भेद आयी हूँ

मिष्ट हलाहल में लथपथ,

भावों के नश्तर चुभोते

बनावटी प्रेम सुधा से लबालब

रचे चक्रव्यूह को;


मौन मेरी भाषा में है

स्वभाव में भी है!

किन्तु.

क्लांत करता है...अपमान,

जगा देता है...स्वाभिमान,

सुनो न!

बेइन्ताह प्रेम का

अंत यही है!


बदल जाते हैं रिश्ते...

लेकिन हृदय छूट जाते हैं,

अपनों की देह में;

याद आने के लिए

जीवनपर्यन्त;

ये भूला ना जाए...


निष्ठुरता भी

आलाप दोहराती है

जब बिक जाती हैं

प्रेम स्मृतियाँ

होती है सौदेबाजी


प्रभुत्व पा लेता है

जहाँ नया आकर्षण,

किन्तु.

होता है हृदयविहीन

सदा स्मरण रहे !


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