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Goldi Mishra

Drama Inspirational

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Goldi Mishra

Drama Inspirational

कोठरी

कोठरी

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चूल्हे की आंच पर तपती मेरी ख्वाहिशें,

दूर एक कोठरी में कर दी हैं कैद मैने सारी उम्मीदें,

तार तार कर दी हैं एक एक बखिया उस लिबास की,

जिस लिबास पर कढ़ाई नई उड़ान की करी थी,

हर दस्तक को अनदेखा किया हैं,

जहां मुमकिन ना बसेरा वहा का पता भी ना रखा हैं,


मैने तो बेहद था जीना सीखा,

इन हथेलियों में मेरी क्यूं दायरों को था रखा,

पराए घर की पूंजी,

कभी खुद की पहचान में मैं खोई सी,

दूरी एक तय की मानो मीलों का सफ़र था,

खुद को मैं भूली मानो मेरा मुझमें कुछ ना था,


मीन सी बिलखती एक नीर की खातिर,

कस्तूरी की चाहत में मैं मृग सी बेगानी भागी,

दूर परे एक आसमां दिखे हैं,

उस आसमां में उड़ते पंछी किसी और जहां के लगे हैं,

मेरे हिस्से के आसमां किसी कोठरी के अंधेरे में गुम हैं,

पंख खो चुके पंछी की तरह ये दिल गुमसुम हैं,


ये रिवाज़ कैसे,

ये पंडित पाखंड कैसे,

किस राग को गा लूं,

किस गीत को लिख दूं,

बिन दरवाज़े बिन खिड़की के इस पिंजरे का क्या करूं,

इन हथेलियों पर लिखें कल को मैं कैसे मिटा दूं।


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