मैं हूँ बस मैं
मैं हूँ बस मैं
ये शब्दों का दायरा मेरा
सिमटना चाहता है उन क्षणों में
न कवि का अंश न मनुष्य का दंभ
जहाँ मैं हूँ और बस मैं हूँ। ।
ये यादों का मिट्टी का गुल्लक मेरा
बिखरना चाहता है उन कणों में
न द्वेश भाव न किसी की प्रीत का राग
जिसमे मैं हूँ और बस मैं हूँ। …
ज़माने से बंधा अश्कों का सागर मेरा
अब बहना चाहता है उन लहरों में
न शर्मिंदगी का दलदल न गर्व का पर्वत
डूबा लहरों में मैं हूँ बस मैं हूँ। ।