वक़्त की कहानी
वक़्त की कहानी
सदियों पुरानी, वक़्त की कहानी, दुनिया जिसे आज दोहरा रही है,
नया साल है, एक बार फिर से, खुशियाँ फिर से मुस्कुरा रही है।
सदियों पुरानी, वक़्त की कहानी…..
मौसम थे बदले, फिर भी बदलेंगे, ये है वो सफर जिसकी मंज़िल नहीं,
वो इक लफ्ज़ कहते हैं जिसको थमना, इसकी दास्ताँ में तो शामिल नहीं।
ज़माने के कितने अंदाज़ बदले, ये धरती न बदली, इसकी चाल न बदली,
आसमां के कितने तारे टूटे, पर वक़्त अपने रफ्तार से बढ़ती जा रही है।
सदियों पुरानी, वक़्त की कहानी…
लाख बदलता रहा आसमां चाल अपनी, तारों ने भी कई चाल बदली,
मगर वक़्त ने हर हाल में अपनी, सीरत न बदली, राहें न बदली।
अगर इंसाँ की तदबीर चलती रहेगी, वक़्त से तक़दीर बनती रहेगी,
बदल जायेगा आदमी का मुकद्दर, वक़्त से जिसकी निभी जा रही है।
सदियों पुरानी, वक़्त की कहानी…