आँखों से आँखों की बातें
आँखों से आँखों की बातें
आखों में मेरी छुपे कुछ राज़,कभी तो उनको सुन के देखो,
जो अधरों से कभी ना निकल सकी,उस बात को समझ के देखो।
मेरी खामोशी कई राज़ों का पर्दाफाश करती है,
परदे के पीछे की प्रत्यक्ष दुनिया बहुत कुछ बयां करती है ।
मन-पटल पर अंकित कुछ राज़ जिनका रह-रह कर उमड़ता सैलाब,
मन तक अपने पहुँचने दो ना, अनकही मेरी उस बात को समझ लो ना।
एक दिन ऐसा भी था जब बेफिक्री का आलम चहुँ ओर था,
अब घायल हो चुकी नादान आशिक़ ये तेरी,
कभी तो आखों से ही मेरे बांवरे मन को भी पढ़ लो ना।
आज लबों से कुछ ना बोलूंगी, शांत मन से तुमको निहारूंगी,
जो तुमने समझा मूक,ना जाने कितने टुकड़ों में बिखर के, चूर-चूर हो जाऊंगी ।
अश्कों सा पिघल जाएगा ह्रदय,पर चुप्पी का आलम ना टूट पायेगा,
प्रेम मन में दफ़न है जो, उसका राज़ गुमनाम हों खो जाएगा।
कोई रंजिश ना होगी तुमसे,ना कोई गिला फिर होगा,
दास्ताँ ए इश्क़ अधूरा रह जाएगा,दिल टूटेगा ज़रूर पर शोर लेशमात्र ना होगा।
आखों में ख़्वाबों की नमी ज़िंदा ना रह पाएगी,
सभी रहस्यों को संभाल कर स्वयं बंद वो हो जाएंगी ।
फिर दोबारा आखों से आखों की गुफ्तगू ना कभी हो पाएगी,
मायूसी की महफ़िल में फिर कभी वे ना खुल पाएँगी,
बस खो जायेंगी और अंततः सर्वदा के लिए बंद हों जायेंगी।