तेरे बाद।
तेरे बाद।
तेरे बाद
कुछ भी तो नया नहीं हुआ
दिन और रात उसी रफ्तार से
निकलते और ढलते हैं।
घर की बालकनी पर वो
चिड़िया वैसे ही चहचहाती है।
वैसे ही हर रोज गली के
बच्चे क्रिकेट खेलते हुए
शोर मचाते हैं
दूधवाला भी रोज ठीक
समय पर आ जाता है,
मैं भी ज्यादा देर तक
नहीं सोता
जल्दी जग जाता हूं।।
तेरे बाद
कुछ भी तो नहीं बदला
ट्यूशन जाते हुए बच्चे
साइकिल की रेस अब भी
लगाते हैं,
वो पानी पूरी वाला अब
भी घंटी बजाते हुए
मेरे घर के सामने से
रोज निकलता है
पड़ोस वाली आंटी अब भी
रोज की तरह मेरा हाल -
चाल लेने आ जाती हैं,
दोस्त भी अब मुझे कुछ
समझाते बुझाते नहीं है।
मैं भी अब कभी कभी
रोता हूं -- अब बस
सिसकियां निकलती हैं।।
तेरे बाद,
कुछ भी नहीं बदला -
तेरे बाद
बस शायद मैं ही ऐसा
समझता था की -
कुछ तो बदल गया है
कुछ बहुत बारीक
कुछ बहुत जरूरी
वो जो हम दोनों ने
पीछे छोड़ दिया,
शायद वो अब भी
वहीं पड़ा होगा
हां, मेरा वजूद
तेरे बाद
यही तो बदला है।

