मेरे भीतर कोई आग जल रही है
मेरे भीतर कोई आग जल रही है
ये बदहवासी क्यूं मन में पल रही है,
जैसे मेरे भीतर कोई आग जल रही है।
रोज़ ये खबरें पढ़ कर अख़बारों की,
ये मेरी रूह घड़ी-घड़ी पिघल रही है।
लाचार हाथों से कुछ कर नहीं पाया,
जिंदगी है कि शाम जैसी ढल रही है।
हम तो अब ख़ामोश है बेज़ुबां की तरह,
मेरी खामोशी भीतर क्यूं मचल रही है।
मैं तो अपने बिस्तर पर बेज़ान पड़ा हूं,
मेरी तन्हाई छत पर अकेले टहल रही है।
