रहने दो
रहने दो


रहने दो अब हरेक तसल्ली झूठी झूठी लगती है
रहने दो अब वो लड़की भी रूठी रूठी लगती है
जिसकी खातिर मैंने नींदों से झगड़ा मोल लिया
जिसको मैंने अपनी जगती रातों से तोल दिया
ख़्वाब तुम्हारा ही था क्या जो ग़ज़लों में आया था
वह नज़्म तुम्हीं पर थी जिसको मैंने फरमाया था
मुझको अब अपनी इस दूरी की तन्हाई सहने दो,
ये तसल्ली मत दो मुझको तनहा तनहा रहने दो।
जैसे हर एक अकेले का अख़बार सहारा होता है
वैसे मेरे जीवन का मुश्किल से गुजारा होता है
जब जब उसकी यादें बिना बताए घर आती हैं
मेरी तनहाई देख उन्हें जब थोड़ी शरमा जाती है
माना ये बात नहीं वाजिब खुशियों के गलियारों में
पर देखो मुझको एक दफा ये आंसू के अंगारों में
मेरी कलम किसी एक की खातिर बस चलने दो
ये तसल्ली मत दो मुझको तनहा तनहा रहने दो।